HOLI Festival of Colors

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                                               होली


होली खेलने की शुरुआत हजारों साल पहले हुई थी. यह एक ऐसा रंगबिरंगा त्योहार है, जिस हर धर्म के लोग पूरे उत्साह और मस्ती के साथ मनाते हैं। प्यार भरे रंगों से सजा यह पर्व हर धर्म, संप्रदाय, जाति के बंधन खोलकर भाई-चारे का संदेश देता है। इस दिन सारे लोग अपने पुराने गिले-शिकवे भूल कर गले लगते हैं और एक दूजे को गुलाल लगाते हैं। बच्चे और युवा रंगों से खेलते हैं। फाल्गुन मास की पूर्णिमा को यह त्योहार मनाया जाता है। होली के साथ अनेक कथाएं जुड़ीं हैं। होली मनाने के एक रात पहले होली को जलाया जाता है। इसके पीछे एक लोकप्रिय पौराणिक कथा है।

                                   HISTORY BEHIND HOLI




 यह कहानी झांसी से लगभग 80 किलोमीटर दूर एक गांव  तीरथ नगर है. माना जाता है यह सतयुग में एक दुष्ट राजा हिरण्यकश्यप की राजधानी हुआ करती थी, वह भगवान  ब्रह्मा बहुत बड़ा भक्त था,उसने भगवान ब्रह्मा की घोर तपस्या करके भगवान ब्रह्मा को उसने प्रसन्न कर लिया जिसकी वजह से भगवान उसके सामने प्रकट हुए और, उससे वरदान मांगने को कहा, फिर जवाब में उसने वरदान मांगा  की (ना ही वह रात में मरे ना दिन मे. ना ही उसे  नर मार पाए ना ही नारी, ना  पशु मार खाए ना पक्षी ,ना देवता मार पाए ना राक्षस, ना कोई अस्त्र ना कोई शस्त्र उसे मार  पाय कोई भी उसकी मृत्यु ना कर पाए) जब भगवान ब्रह्मा ने उसे यह वरदान दे दिया तब उसने संपूर्ण पृथ्वी पर यह घोषणा कर दी थी अब भगवान विष्णु की नहीं उसकी पूजा की जानी चाहिए,और जो भी उसकी पूजा नहीं करेगा उसे मृत्यु दंड मिलेगा.मृत्युदंड के भैंस है सभी लोग उसकी पूजा करने लगे वरदान के चलते उसने संपूर्ण पृथ्वी पर आतंक और भय का माहौल बना रखा था सभी लोग उससे डरते थे.



लेकिन उसके राज में केवल एक ही था जो अभी भी भगवान विष्णु की पूजा करता था. वह और  कोई नहीं हिरण्यकश्यप का ही सुपुत्र प्रह्लाद था. जब हिरण्यकश्यप ने अपने सुपुत्र प्रह्लाद से कहा कि वह भी भगवान विष्णु को छोड़ उसकी पूजा करें तब प्रह्लाद ने साफ इनकार कर दिया. जिसके फलस्वरूप हिरण्यकश्यप ने उसे मृत्युदंड देने की ठान ली. हिरण्यकश्यप ने प्रहलाद को  मारने के कई असफल प्रयास किए .  हिरण्यकश्यप ने अपने सुपुत्र को एक बहुत ऊंची खाई में फेंक दिया. प्रहलाद नीचे गिरता हुआ भी भगवान विष्णु का नाम लेता रहा . भगवान विष्णु ने एक जोर की हवा का झोंका फेंका जिसकी वजह से प्रह्लाद आराम से नीचे खड़ा हो गया.  हिरण्यकश्यप का  गुस्सा और भी ज्यादा बढ़ गया,  फिर हिरण्यकश्यप ने और भी कई जतन किए प्रह्लाद को मरवाने के जैसे कि हाथी के पैर से को चलवा देना,जहरीले सांपों के बीच बैठा देना, कुएं में ढकेल देना, इत्यादि और भी कई उपाय किए परंतु प्रह्लाद पर भगवान विष्णु की कृपा होने की वजह से उसका बाल भी बांका ना हो पाया .



हिरण्यकश्यप की एक बहन जिसका नाम होलीका था उससे कहा कि वह प्रह्लाद को लेकर अग्नि में बैठ जाए, होलिका को वरदान में एक ऐसी चादर मिली थी जिस को लपेटने से वह अग्नि  में नहीं जलती थी .अगले ही दिन लकड़ियों की बहुत बड़ी समाधि बनाई गई जिस को जलाकर होलिका अपनी चादर पहने और प्रह्लाद को गोद में लिए उस अग्निकुंड में बैठ गई. दूदू करती जलती अग्नि में भी प्रह्लाद भगवान विष्णु का नाम ही पुकारे जा रहा था प्रभु कृपा से वह चादर वायु की वजह से भक्त प्रल्हाद पर जा गिरी और होलीका उसी  अग्नि में जलकर भस्म हो गई. इस प्रकार प्रह्लाद को मारने के प्रयास में होलिका जलकर भस्म हो गई. यह सब देख भगवान विष्णु ने नरसिमा का अवतार लिया जोकिंग आधा शेर और आधा मानव था, उन्होंने हिरण्यकश्यप को अपनी गोदी में  लेटा कर महल की चौखट पर ले जाकर संध्या के वक्त अपने नाखूनों से हिरण्यकश्यप का वध कर दिया.यह सब भगवान विष्णु को इसलिए करना पड़ा क्योंकि हिरण्यकश्यप को नाही नर मार सकता था ना ही नारी, ना ही कोई जानवर, ना उसे दिन में मारा जा सकता था ,ना ही रात में ना ही घर के अंदर मारा जा सकता था ना ही घर के बाहर, ना कोई अस्त्र मार सकता था ना कोई शास्त्र, नाम है जमीन पर मारे जा सकते थे ना ही आयु में.


तो इस प्रकार भगवान नरसिम्हा नाही नर थे  ना ही नारी और ना ही कोई जानवर, और उससे ना घर में मारा ना घर के बाहर,  ना ही उन्होंने उसे कोई अस्त्र से मारा ना ही कोई शस्त्र से, नाव भाइयों ने मारा ना जमीन. होलिका दहन के दिन ही हम होली का त्यौहार मनाते हैं. इस तरह ही हमें यह पता चलता है, की बुराई कितनी ही बड़ी हो मगर अच्छाई के सामने, नहीं टिक पार्टी.

   







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